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कांग्रेस के मास्‍टर स्‍ट्रोक से विपक्ष हलकान

इंसाइड न्यूज ब्यूरो , नई दिल्‍ली

कांग्रेस के मास्‍टर स्‍ट्रोक ने यूपी में चुनाव जीतने का ख्‍वाब देख रहीं सियासी पार्टियों को बचाव की मुद्रा में खड़़ा कर दिया है। जो लोग कल तक कांग्रेस को यूपी की सियासत में जीरो मानकर चल रहे थे। वह अब बुझे मन से कांग्रेस को मुकाबले में मानने को मजबूर हो गए है। कल तक कांग्रेस को किसी गिनती में नहीं गिनने वाले अब कह रहे है कि कांग्रेस और भाजपा में नंबर तीन का मुकाबला है और आज की तारीख में इस मुकाबले में भाजपा चौथे पायदान पर है। तो कोई कह रहा है कि अगली सरकार कांग्रेस और बसपा की होगी। । मतलब सरकार की कुंजी कांग्रेस के हाथ में होगी। नतीजतन कांग्रेस के मास्‍टर स्‍ट्रोक से घायल सियासी दल अब नए सिरे से अपनी राणनीति बनाने में जुट गए है। सबसे अहम बात ये है कि पिछले 27 साल से गर्दन झुकाकर सम्‍मान की रक्षा करने वाले ब्राहमणों के ललाट पर अजीब सी चमक आ गई है। उनकी कालर खड़ी हो गई है।

यह हालात यूहीं नहीं बनी । बीते 27 सालों में ब्राहमणों ने काफी जख्‍म झेले हैं। कभी कांग्रेस के सबसे मजबूत कहे जाने वाले ब्राहमण वोट बैंक को यह खामियाजा अपने खुद के भावनात्‍मक फैसले के कारण भुगतना पड़ा। राम मंदिर और अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाने के ख्‍वाब में ब्राहमण खुद कांग्रेस से पलायन कर भाजपा के साथ चले गए। ब्राहमण समाज अपने मकसद में तो कामयाब हो गया। अटल जी प्रधानमंत्री भी बन गए। लेकिन उसके बाद अटल जी की पार्टी ने ब्राहमण समाज समाज को हाशिये पर धकेल दिया और कांग्रेस में ब्राहमण समाज के जाते ही विरोधियों ने कब्‍जा कर लिया। इससे ब्राहमण समाज अपने को लुटा पिटा मानने लगा।। इसका दोनों को ही नुकसान हुआ। कांग्रेस और ब्राहमण दोनों हाशिये पर चले गए। इसके बाद यूपी में मुलायम सिंह यादव और मायावती का राज आया। मुलायम को ब्राहमण फूटी आंख नहीं सुहाते । तब इज्‍जत बचाने के लिये वाया सतीश मिश्रा ब्राहमणों ने बसपा से सम्‍मान का समझौता किया। इसका मायावती को लाभ भी मिला। लेकिन ब्राहमणों को उनका वह सम्‍मान नहीं मिला जिसके वह दस से बारह फीसद वोट के लिहाज से हकदार थे।

 इधर कांग्रेस की हालत भी राज्‍य की राजनीति में लगभग नगण्‍य हो गई। कांग्रेस में ब्राहमण विरोधी लॉबी प्रभावी हो गई। इसमें जनार्दन दिद्वेदी जैसे मठाधीशों ने अपना तो भला किया लेकिन ब्राहमणों की स्थिति दो कोड़ी की हो गई। राहुल गांधी के आने से ब्राहमणों को उम्‍मीद बंधी कि ये अपनी दादी इंदिरा गांधी से सीख लेकर आगे बढेंगे। लेकिन जनार्दन और उनके टटपूजिए पटठों ने राहुल को पप्‍पू घोषित कर दिया। इसका लाभ नरेंद्र मोदी को मिला। लेकिन सरकार चलाना और विपक्ष की राजनीति करना दो अलग पहलू हैं। मोदी भक्‍तों को यह बात भले समझ न आई हो। लेकिन जनता को समझ आ गई। कांग्रेस का सौभाग्‍य कहो कि उसे प्रशांत किशोर जैसे जमीनी आदमी का साथ मिल गया। प्रशांत ने अपनी पूरी तपस्‍या दांव पर लगा कर यूपी में कांग्रेस को खड़ा करने का ठेका ले लिया। कांग्रेस पर कब्‍जा करे बैठे पॉलिटकल माफिया को यह रास नहीं आया।

 कांग्रेस के नाम पर कभी सपा और कभी भाजपा से सुपारी लेने वाले प्रशांत के खिलाफ हो गए। मीडिया का एक बड़ा वर्ग भी इनका सहायक हो गया। नतीजनत प्रशांत के खिलाफ न्‍यूज फीड होना शुरू हो गईं। यही बात राहुल गांधी को अखर गई।

 बताते है कि प्रशांत ने जब एक दिन राहुल के खास माने जाने वाले जितिन प्रसाद को रात में जरूरी फोन किया तो वह भड़क गए। ये बात राहुल को भी नागवार गुजरी और उसकी के बाद गोपनीय आपरेशन यूपी शुरू हुआ। राजबब्‍बर तब तक राहुल के चश्‍मो चिराग बन चुके थे। प्रशांत के सुझाव पर राहुल ने राज बब्‍बर को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने पर हामी भर दी। लेकिन प्रशांत चाहते थे कि कोई ब्राहमण चेहरा सामने आए। उनका तर्क था कि ब्राहमण अकेला नहीं चलता पूरा कुनबा उसके साथ चलता है। मतलब एक के साथ चार लॉजमी है। बात बनी पहले जितिन पर चर्चा हुई लेकिन उनकी ईगों ने पीछे धकेल दिया। प्रमोद तिवारी और रीता बहुगुणा के नाम पर भ्‍ज्ञी मंथन हुआ। लेकिन बात नहीं बनी। उसके बाद शीला दीक्षित की गांधी परिवार से नजदीकियां और अनुभव काम आया। यहयोगियों के रूप में संजय सिंह और इमरान मसूद को महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी दी गई। मतलब टीम का गठन हुआ। यूपी के प्रभारी गुलामनवी आजाद की इसमें अहम भूमिका रही।

ब्राहमणों को इसी पल का इंतजार था। नतीजा सबके सामने है। अभी टीम का ऐलान हुआ है और कांग्रेस मुख्‍य मुकाबले में आ गई है। राजबब्‍बर को सियासी दल आज भले ही हल्‍के में लें । लेकिन वह अकेल सबका बैंड बजाने की कूबत रखते हैं। शीला का तजुर्वा और संजय सिंह की प्‍लानिंग गुलामनवी आजाद और इमरान मसूद का जलजला और प्रियंका गांधी का समर में उतरना। अब तक दलालों के कारण घरों में कैद कांग्रेसियों को मैदान में लाने का ताना बाना बुन चुका है। हालांकि कांग्रेस को जमींदोज करने की सुपारी ले चुके दलाल कांग्रेसियों से फीड हो रहे मीडिया के एक वर्ग को यह मुगेरीलाल के सपने दिखाई दे रहे हैं। बेहतर होगा कि सियासी गलियारों की सियासत करने वाले महानुभाव जरा ब्राहमण बहुल क्षेत्रों में जाकर तटस्‍थ भाव से नजारा देखें और फिर पोस्‍ट करें हकीकत सामने आ जाएगी।


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