नौकरी की पदोन्नति में आरक्षण मूल अधिकार नहीं?

नौकरी की पदोन्नति में आरक्षण मूल अधिकार नहीं?

आरक्षण का इतिहास

आरक्षण का इतिहास भारतीय समाज के विकास के साथ ही साथ बदलता चला गया है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसे दलित, अधिपिछड़ा और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिए उनके सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था। लेकिन, क्या यह नौकरी की पदोन्नति में भी लागू होना चाहिए, यह एक बड़ा सवाल है।

आरक्षण की जरूरत

आरक्षण की जरूरत का मुख्य कारण यह है कि भारत में कुछ समुदायों को सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा होने के कारण उन्हें अधिकारों और सरकारी सेवाओं के मामले में बराबरी की गारंटी देने की जरूरत है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि सभी वर्गों के लोगों को उनके योग्यता और क्षमता के हिसाब से सरकारी नौकरियाँ मिल सकें।

पदोन्नति में आरक्षण: अधिकार या सुविधा?

नौकरी की पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा हमेशा से ही विवादास्पद रहा है। कुछ लोग मानते हैं कि यह एक अधिकार है, जबकि कुछ अन्य लोग इसे एक सुविधा मानते हैं। आमतौर पर, जो लोग इसे एक अधिकार मानते हैं, वे यह मानते हैं कि समानता के सिद्धांत को बरकरार रखने के लिए यह जरूरी है।

न्यायिक दृष्टिकोण

न्यायिक दृष्टिकोण से देखें तो आरक्षण को एक मूल अधिकार मानने का सवाल उठता है। भारतीय संविधान के अनुसार, आरक्षण को एक विशेष अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है, जिसे केवल उन लोगों के लिए प्रदान किया जाता है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। लेकिन, यह नौकरी की पदोन्नति में भी लागू होना चाहिए, इस पर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है।

समाज की दृष्टि

समाज की दृष्टि से, पदोन्नति में आरक्षण का समर्थन करने वाले लोग मानते हैं कि यह सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है। वे मानते हैं कि यह उन लोगों को उचित मौके प्रदान करता है जो वर्ण और जाति की वजह से पिछड़े हुए हैं। फिर भी, इसका विरोध करने वाले लोग मानते हैं कि यह सिस्टम योग्यता को अनदेखा करता है और अधिक योग्य उम्मीदवारों को चयन से वंचित करता है। उनका मानना है कि आरक्षण को केवल उन लोगों के लिए सीमित रखना चाहिए जो वास्तव में इसकी आवश्यकता है।

छुट्टी a टिप्पणि