रेड फोर्ट हमले में शामिल डॉक्टरों का व्हाइट-कॉलर आतंकी सेल, 2900 किलो विस्फोटक बरामद

रेड फोर्ट हमले में शामिल डॉक्टरों का व्हाइट-कॉलर आतंकी सेल, 2900 किलो विस्फोटक बरामद

10 नवंबर, 2025 को दिल्ली के रेड फोर्ट के पास एक आतंकी हमले में 15 लोगों की मौत हो गई — और ये हमला किसी आम आतंकी सेल नहीं, बल्कि डॉ. उमर-उन-नबी जैसे शिक्षित डॉक्टरों द्वारा चलाया गया था। इस हमले की जिम्मेदारी जयश-ए-मोहम्मद (JeM) के साथ जुड़े ऑनलाइन हैंडलर्स ने ली, जिन्होंने इंटरनेट के जरिए भारतीय डॉक्टरों को धोखे से आतंकवाद के लिए तैयार किया। ये नहीं कोई अज्ञात घटना है — ये आतंकवाद के नए रूप की शुरुआत है।

व्हाइट-कॉलर आतंकवाद: डॉक्टरों का खतरनाक बदलाव

पिछले 15 सालों में आतंकवाद के 57 मामलों में सिर्फ तीन आरोपी शिक्षित पेशेवर थे। लेकिन 2018 से 2025 तक, इस संख्या में चार गुना बढ़ोतरी हुई — और इसका एकमात्र कारण रेड फोर्ट हमला है। जब तक आतंकवाद का चेहरा बंदूक चलाने वाले युवाओं का रहा, तब तक ये नया मॉडल — जहां डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक बम बनाने के लिए लैपटॉप के पीछे बैठ जाते हैं — देश के लिए सबसे खतरनाक चुनौती बन गया है।

इस सेल के सदस्यों में डॉ. मुजम्मिल गनाइ, डॉ. अदील राठौर, डॉ. मुजफ्फर राठौर और डॉ. उमर-उन-नबी शामिल थे। जबकि गनाइ और राठौर को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गिरफ्तार कर लिया है, मुजफ्फर राठौर अगस्त 2025 में अफगानिस्तान भाग गया। जम्मू-कश्मीर पुलिस अब उसकी वापसी के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव बना रही है।

2900 किलो विस्फोटक: फरीदाबाद के गुप्त भंडार

हमले के ठीक एक दिन पहले, 9 नवंबर को फरीदाबाद के धाऊज क्षेत्र में पुलिस ने 350 किलो अमोनियम नाइट्रेट, AK-56 राइफल, हैंडगन और बम बनाने के उपकरण बरामद किए। अगले दिन, 10 नवंबर को एक दूसरे स्थान से 2563 किलो विस्फोटक सामग्री मिली — जिसमें रसायन, इलेक्ट्रॉनिक सर्किट और टाइमिंग डिवाइस शामिल थे। कुल मिलाकर 2900 किलो विस्फोटक — ये एक ऐसा भंडार है जो दिल्ली के कई हिस्सों को ध्वस्त कर सकता था।

ये सामग्री एक यूनिवर्सिटी के पास छिपाई गई थी। और यही बात सबसे डरावनी है: आतंकवाद अब शिक्षा के केंद्रों में घुस रहा है।

डिजिटल धोखा: टेलीग्राम और यूट्यूब का खतरा

इन डॉक्टरों की रेडिकलाइजेशन की शुरुआत 2019 में फेसबुक और एक्स (ट्विटर) पर हुई। लेकिन जब वे अपनी रुचि दिखाने लगे, तो हैंडलर्स ने उन्हें टेलीग्राम पर छिपे प्राइवेट ग्रुप्स में शामिल कर लिया। वहां उन्हें ‘उकासा’, ‘फैजान’ और ‘हश्मी’ नामक हैंडलर्स ने धोखे से ब्रेनवॉश किया।

यूट्यूब पर वे आईईडी (Improvised Explosive Devices) बनाने के वीडियो देखते थे। एक डॉक्टर ने जांचकर्ताओं को बताया कि उसने एक वीडियो दो बार देखा — एक बार बम कैसे बनाते हैं, दूसरी बार बम कैसे विस्फोट करता है। इन वीडियोज़ को एक अफगानिस्तान स्थित आतंकी नेटवर्क ने बनाया था।

मौलवी इरफान अहमद: रूट का जड़

इस सेल की शुरुआत जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले के एक मस्जिद के मौलवी इरफान अहमद ने की। उन्होंने शिक्षित युवाओं को चुना, उन्हें आतंकवाद के लिए तैयार किया, और उन्हें जयश-ए-मोहम्मद के नेटवर्क से जोड़ा। उनका लक्ष्य स्पष्ट था: एक ऐसा ‘अदृश्य’ आतंकी सेल बनाना जिसे कोई पहचान न पाए।

इरफान ने मुजम्मिल शाकिल को अपने गुरु के रूप में चुना। शाकिल ने फिर अन्य डॉक्टरों को आकर्षित किया। ये एक नियमित रूप से काम करने वाला रूट था — जहां एक धार्मिक नेता एक आतंकी सेल का नेतृत्व कर रहा था।

अन्य सहयोगी: थ्रेट पोस्टर्स और अफवाहें

इसी समय, स्रीनगर के नोगाम क्षेत्र के तीन युवाओं — अरिफ निसार दार, यासिर-उल-अशरफ और मकसूद अहमद दार — को बुनपोरा में आतंकी पोस्टर चिपकाने के लिए गिरफ्तार किया गया। इन पोस्टर्स पर लिखा था: ‘हम देख रहे हैं कि आप सुरक्षा बलों की मदद कर रहे हैं। यह आखिरी चेतावनी है… हम जानते हैं कि कौन सूचना दे रहा है। वे बच नहीं पाएंगे।’

इन पोस्टर्स पर हस्ताक्षर थे — ‘कमांडर हनजाला भाई’। ये नाम अभी तक किसी आधिकारिक सूत्र द्वारा पुष्टि नहीं हुआ है, लेकिन इनका उपयोग आतंकवादी भावना फैलाने के लिए किया जा रहा था।

क्यों भारत में रहने को कहा गया?

क्यों भारत में रहने को कहा गया?

इन डॉक्टरों ने शुरू में सीरिया या अफगानिस्तान जाने की योजना बनाई थी। लेकिन उनके हैंडलर्स ने उन्हें रोक दिया। उन्हें कहा गया: ‘भारत में रहो। यहां बम लगाओ। यहां लोगों को मारो।’

क्यों? क्योंकि भारत के अंदर आतंकवादी कार्रवाई करना अधिक प्रभावी है। एक आतंकी जो बाहर जाता है, उसकी पहचान आसानी से हो जाती है। लेकिन एक डॉक्टर जो अपने अस्पताल में काम करता है, उसकी पहचान कौन करेगा?

सरकार का जवाब: राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौती

हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में संसदीय सुरक्षा समिति ने एक बयान जारी किया: ‘हम इस स्थिति को सर्वोच्च स्तर पर निगरानी कर रहे हैं।’

सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक विशेष समाचार कार्यक्रम में कहा: ‘यह संदेश स्पष्ट है — इसका उद्देश्य जितने अधिक लोग मार सके, उतने मारना था।’

एनआईए, जम्मू-कश्मीर पुलिस, उत्तर प्रदेश और हरियाणा पुलिस की संयुक्त टीम अभी भी इस नेटवर्क को खोल रही है। अफगानिस्तान के साथ द्विपक्षीय सहयोग शुरू हो चुका है। डॉ. मुजफ्फर राठौर की गिरफ्तारी के लिए अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय को भी अपील की जा रही है।

क्या अगला हमला कहां होगा?

ये नया मॉडल अभी शुरू हुआ है। लेकिन जांच ने दिखाया है कि ऐसे 12 और डॉक्टरों की लिस्ट बन चुकी है — जिन्हें टेलीग्राम पर टारगेट किया गया है। उनमें से कुछ ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। लेकिन उनके पास बम बनाने के लिए जानकारी है।

ये आतंकवाद अब बाहर से नहीं, अंदर से आ रहा है। और इसका सबसे खतरनाक हिस्सा ये है — आप उसे पहचान नहीं पाते।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

इस व्हाइट-कॉलर आतंकवादी मॉडल का असर क्या है?

इस मॉडल का सबसे बड़ा असर यह है कि आतंकवाद अब सिर्फ गांवों या सीमाओं तक सीमित नहीं रहा। शिक्षित वर्ग, जो पहले आतंकवाद के खिलाफ थे, अब उसका हिस्सा बन रहे हैं। इसका मतलब है कि आतंकी अब अस्पताल, यूनिवर्सिटी और ऑफिस में छिपे हो सकते हैं। इसलिए सुरक्षा की नजर अब सिर्फ बाहरी सीमाओं पर नहीं, बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य संस्थानों पर भी होनी चाहिए।

जयश-ए-मोहम्मद कैसे भारतीय डॉक्टरों को टारगेट करता है?

जयश-ए-मोहम्मद के हैंडलर्स सोशल मीडिया पर ऐसे युवाओं को ढूंढते हैं जो अपनी जिंदगी में निराश हैं — शायद नौकरी नहीं मिल रही है, या घर के दबाव से तंग आ गए हैं। फिर वे उन्हें टेलीग्राम पर एक ऐसे ग्रुप में शामिल कर लेते हैं जहां उन्हें ‘मुक्ति’ और ‘इज्जत’ का झूठा सपना दिखाया जाता है। ये नहीं कि वे आतंकवाद पसंद करते हैं — बल्कि वे बदलाव की तलाश में हैं।

2900 किलो विस्फोटक कितना खतरनाक है?

2900 किलो अमोनियम नाइट्रेट का विस्फोट दिल्ली के केंद्रीय भाग को पूरी तरह से नष्ट कर सकता है। ये एक ऐसी मात्रा है जो एक बार में 10,000 लोगों को प्रभावित कर सकती है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि ये सामग्री बरामद की गई थी — अगर ये बम लग गए होते, तो रेड फोर्ट हमले की तुलना में 10 गुना अधिक नुकसान होता।

क्या ये आतंकवादी नेटवर्क अभी भी सक्रिय है?

हां। एनआईए के अनुसार, 2025 के अंत तक 12 और डॉक्टरों के नाम आतंकवादी नेटवर्क के साथ जुड़े हुए हैं। इनमें से कुछ ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है, लेकिन उनके पास बम बनाने की तकनीक और निर्देश हैं। एक डॉक्टर ने जांच में कहा कि उसके दो सहकर्मी भी ‘उकासा’ से जुड़े हुए हैं।

मौलवी इरफान अहमद की भूमिका क्यों महत्वपूर्ण है?

मौलवी इरफान अहमद एक ऐसा सेतु है जो धार्मिक विश्वास और आतंकवाद को जोड़ता है। वह एक विश्वसनीय व्यक्ति है — जिसे लोग आसानी से भरोसा करते हैं। उसने डॉक्टरों को यह बताया कि वे ‘इस्लाम की रक्षा’ के लिए काम कर रहे हैं। ये धार्मिक तर्क उन्हें आतंकवाद के लिए तैयार करने का सबसे शक्तिशाली तरीका है।

अगले कदम क्या होंगे?

सरकार अब डिजिटल निगरानी बढ़ा रही है — खासकर टेलीग्राम और यूट्यूब पर। एनआईए ने एक नया इकाई बनाई है जो डॉक्टरों और शिक्षकों के ऑनलाइन व्यवहार का विश्लेषण करेगी। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर के सभी अस्पतालों में एक नए नियम के तहत सभी कर्मचारियों का ऑनलाइन इतिहास जांचा जाएगा।