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करवट बदलती कला

चित्रों की परंपरागत भाषा से बाहर निकलकर आधुनिक चित्राकर नए आयाम गढ़ रहे हैं। कलात्मकता की ऐसी ख्वाहिशों को अपने रंगों से सजोने में जुटे कलाकारों के विषय अब बदल रहे हैं। अक्सर यह कहा जाता है कि मॉर्ड्न आर्ट आम आदमी की समझ से परे की कला है, लेकिन कई आधुनिक चितेरों ने लूटमार, आगजनी,  बलात्कार, आतंकवाद, आत्महत्या, भ्रूण हत्या और उपद्रवों के कारण पैदा हुए भय को कुछ इस तरह संजोना शुरू कर दिया है। कि अब कला और दर्शक की दूरियां घट रही हैं।

पहचान के प्रयास

कुएं से सिर पर पानी का घड़ा लाती, चूल्हा फूंकती, घट्टी फीसती स्त्री से अब अपनी कला को बाहर लाते हुए
चित्रकार अपनी कूंची उन मुद्दों की ओर घुमा रहे हैं, जिनमें व्याथा, पीड़ा और संवेदना भरी है।
जो विषयवस्तु और कलात्मकता के पैमाने पर आम आदमी को आसामी से समझ आ सकें। फिल्म, अखबार
और सुर्खियों में बने रहने वाले आत्महत्या या बलात्कार के दृश्यों के प्रति संवेदनाओं की कूचीं के बारे में वरिष्ठ
चित्रकार रमेश गर्ग कहते हैं, जिन्होंने पूरे विश्व में भारतवर्ष का नामरोशन करने का बीड़ी उठा रखा है कि वे आधुनिक चि6कला के माध्यम को ऐसी पहचान देंगे, जो आम आदमी की समझ में आ सके और आधुनिक कला पर लगा हुआ यह आक्षेप मिट जाएगा कि आधुनिक कला समझ में नहीं आती।