रितेश मिश्रा
सपा से दूरियां बढ़ने के बाद अमर सिंह ने अब अपनी भावी सियायत को लेकर पेशबंदी शुरू कर दी है। एक तरफ जहां वह उत्तर प्रदेश के
विभाजन का समर्थन कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की तर्ज पर वह पिछड़ों के मसीहा बनने की कोशिश में जुटे हैं। रविवार को वाराणसी में जय भारत समानता पार्टी द्वारा आयोजित पिछड़ो वर्ग सम्मेलन में भाग लेकर उन्होंने जिस तरह कुशवाहा,राजभर, प्रजापति, पटेल व निषाद समुदाय के लोगों को एक झंडे तले एक जुट करने की बात कही है वह इसका प्रमाण है। इस समारोह में उन्होंने बिना नाम लिए सपा मुखिया मुलायम सिंह पर तंज करते हुए कहा कि पिछडों का मतलब केवल यादव नहीं है बल्कि और दूसरी जातियां भी हैं।इस तरह एक
तरफ जहां वह पिछड़ों के हकों को लेकर लड़ने की बात कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ अलग पूर्वांचल राज्य के गठन की मांग का समर्थन कर चुके हैं। दरअसल अमर सिंह सपा के पदों से त्याग प्रत्र देने के बाद अभी तय नहीं कर पा रहे हैं कि वह कांग्रेस में जाएं, वापस मुलायम के पास जाएं या फिर अपनी अलग पार्टी बनाएं। सूत्रों का कहना है सपा से अमर सिंह की जिस ढ़ंग से दूरियां बढीं हैं उसमें अब वापसी की गुंजाइश न के बराबर है।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है अमर सिंह खुद इशारा कर चुके हैं कि उनमें कांग्रेस का जीन है। मतलब वह तो पुराने कांग्रेसी हैं, लेकिन कांग्रेस में अमर सिंह वो रुतबा हासिल कर पाएंगे जो उन्हें सपा में हासिल था इसमें संदेह है। उसके वजह कांग्रेस में एक से एक घाघ व शातिर नेता पड़े हुए हैं, जो कभी नहीं चाहेंगे कि उनके रहते अमर सिंह कांग्रेस के प्रथम पक्तिं के नेताओं में शामिल हों। जाहिर है कांग्रेस में जाने की राह भी अमर सिंह के लिए सहज नहीं है। इन स्थितियों में उनके सामने दो ही विकल्प बचते हैं। एक कि वह किसी राकांपा जैसी पार्टी का दामन थामें या फिर अपनी पार्टी बनाकर यूपीए या एनडीए का घटक बन जाएं। अभी तक के उनके आचरण से अंतिम विकल्प ज्यादा मुफीद नजर आ रहा है। यही वजह है कि वह वीपी सिंह की तर्ज पर पिछड़ों को संगठित करने में जुट गए हैं। चुकिं वह पिछले दो दशक पिछड़ों के नेता मुलायम सिंह के साथ रहे हैं, इसलिए वह यादवों के अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग के जो लोगों की समस्याओं और मांगों से वाकिफ हैं। दूसरी तरफ पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर एवं विश्वनाथ प्रताप सिंह के निधन के बाद यूपी में राजपूतों को अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर दबंग राजपूत नेता नहीं मिल पाया है। हांलाकि भाजापा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष इस विरासत के दावेदार बने हुए हैं। लेकिन अमर समर्थकों का मानना है कि उनके नेता 'अमर सिंह' में जो सियासी जोड़तोड़ की जो खासियत है वो उनको राजपूतों का दुलारा बना सकती है। यही वजह है कि वह राजपूतों की बात कर रहें हैं पिछड़ों की बात कर रहें हैं और पूर्वांचल की बात कर रहे हैं ये तीनों ही चीजें उनकी अगल पार्टी की सियासत में मददगार साबित हो सकती हैं।