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खतरनाक हो सकता है डिप्रेशन(Depression)

तेजी से भागती दुनिया में हर कोई चाहता है कि वो सबसे आगे दिखे। और सबसे आगे दिखने की इस रेस में अगर कोई पीछे रह जाता है तो कहीं न कहीं वो इस कारण डिप्रेशन में चला जाता है। डिप्रेशन को डॉक्टर मानसिक रोग से जोड़कर भी देखते हैं। लेकिन जरूरी नहीं कि अगर आप तेजी से भागती इस दुनिया के कदम से कदम न मिला पाएं तो आप इस डिप्रेशन में चले जाते हैं डिप्रेशन(Depression) में जाने के और भी बहुत से कारण हो सकते हैं।

जैसे समय के साथ बढ़ते घरेलू विवाद, आपसी मतभेद, कार्य की व्यस्तता, अपने मुताबिक कार्य का न होना, दफ्तर में अपने से ऊपर बैठे अधिकारी द्वारा तिरस्कृत किया जाना, बढ़ते तनाव व गलत संगत की वजह से किसी नशे का आदी हो जाना, बदलते समय के अनुरूप अपनी सोच में बदलाव न लाना, लंबे समय से किसी बीमारी से पीड़ित रहना तथा सबसे महत्वपूर्ण कारण अपने अंदर की प्रतिभा तथा क्षमता को नजरअंदाज कर अपने आपको दूसरों से हीन समझना डिप्रेशन के मुख्य कारणों में से है।

 

इतना ही नहीं डिप्रेशन केवल बड़ो को ही नहीं होता बल्कि इसकी चपेट में अब तेजी से युवा वर्ग भी आता जा रहा है। इसका एक कारण युवाओं पर बढ़ता अधिक बोझ है। जैसे पढ़ाई का अत्यधिक बोझ, घर पर होमवर्क का टेंशन, माता-पिता द्वारा बच्चे को स्कूल में कम अंक मिलने पर डाँटना, बच्चों को अपनी रुचि अनुरूप कार्य करने से रोकना आदि मुख्य कारण हैं कभी-कभी इस डिप्रेशन के कारण इन बच्चों के मन में आत्महत्या की भावना पनपना तक पनपने लगती है। जिसता ताजा उदाहरण मुंबई में लगातार युवाओं द्वारा किए जा रहीं आत्यहत्याएं हैं।

 

आधुनिक शास्त्र डिप्रेशन का कारण मस्तिष्क में सिरोटोनीन, नार-एड्रीनलीन तथा डोपामिन आदि न्यूरो ट्रांसमीटर की कमी मानता है अतः इन्हीं न्यूरो ट्रांसमीटर की सामान्य मात्रा को बनाए रखने वाली औषधियाँ जैसे ट्रायसायक्लिक वर्ग या स्फेसिफिक सिरोटोनीन री-अपटेक इनहीबिटर वर्ग की दवाइयाँ मुख्य रूप से दी जाती हैं। इनके अपने फायदे व नुकसान हैं।

 

अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे या आप इस डिप्रेशन के शिकार न हों तो कृप्या खाली रहने की स्थिति में फालतू नहीं बैठें, अपितु उस समय में अपनी रुचि का कोई कार्य या किसी पत्रिका, पुस्तक आदि का वाचन करें अथवा अपने मित्रों के साथ किसी बौद्धिक विषय पर वार्तालाप करें। सामने वाले व्यक्ति की जो बात अच्छी न लगे, उसे नजरअंदाज कर दें। रोज प्रातःकाल अनुलोम-विलोम, प्राणायाम तथा ईश्वर का ध्यान करें। अपनी गलतियों पर दुख करने की बजाए आगे से वे न हों, इसके लिए कटिबद्ध रहें। यह मानकर चलें कि विकट परिस्थितियाँ जीवन का अभिन्न अंग हैं।